Monday, June 13, 2011

प्यास

हमर गाम छूटि पर गेल, पेट भरबाक लेल।
भूख लागल अछि एखनो, उमरि बीत गेल।

नौकरी की भेटल, अपनापन छुटल।
नेह  डूबल  वचन केर, आशा टूटल।
दोस्त-यार कतऽ गेल, नव-लोक अपन भेल।
रही   गाम    केर    बुधियार,  एत्तऽ   बलेल।
हमर गाम छूटि गेल -----

आयल पावनि-तिहार, गाम जाय के विचार।
घर  मे   केलहुँ  जौं  चर्चा,  भेटल  फटकार।
नहि   नीक   कुनु   रेल,  रहय  लोक   ठेलमठेल।
कनिया कहली जाऊ असगर, आ बंद करू खेल।
हमर गाम छूटि गेल -----

की  कहू  मन  के  बात, छी  पड़ल  काते  कात।
लागय छाती पर आबि कियो राखि देलक लात।
घर लागय अछि जेल, मुदा करब नहि फेल।
नया    रस्ता    निकालत,   सुमन    ढहलेल।
हमर गाम छुटि गेल -----

1 comment:

  1. Ki kahu monak baat, chhi paral kate kat...pahil ber bujhna gel keo appan jakan...ahan samarth chhi...shabdak takat aichh ahan lag...Anup
    anupfuis.blogspot.com

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