Thursday, June 16, 2011

आत्म-दर्शन

ठोकलहुँ पीठ अपन अपने सँ बनलहुँ हम होशियार।
लेकिन सच कि एखनहुँ हम छी बेबस आउर लाचार।
यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनिलिय हमर पुकार।।

गाम जिला के मोह नञि छूटल नहिं बनि सकलहुँ हम मैथिल।
मंडन के खंडन केलहुँ आ बिसरि गेल छी कवि-कोकिल।
कानि रहल छथि नित्य अयाची छूटल सब व्यवहार।
बेटीक बापक रस निकालू छथि सुन्दर कुसियार।
यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनिलिय हमर पुकार।।

मिथिलावासी बड़ तेजस्वी इहो बात अछि जग जाहिर।
टाँग घीचय मे अपन लोक के एखनहुँ हम छी बड़ माहिर।
छटपट मोन करय किछु बाजी कहाँ सुनय लऽ क्यो तैयार?
कतहु मोल नहि बूढ़ पुरानक एक सँ एक बुधियार।
यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनिलिय हमर पुकार।।

"संघ" मे शक्ति बहुत होइत अछि कतेक बेर सुनलहुँ ई बात।
ढंगक संघ बनल नहि एखनहुँ हम छी बिल्कुल काते कात।
हाथ सुमन लय बिहुँसल मुँह सँ स्वागत वो सत्कार।
हृदय के भीतर राति अन्हरिया चेहरा पर भिनसार।
यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनिलिय हमर पुकार।।

1 comment:

  1. अरे वाह, मैथिली में भी बडा रस है। अच्‍छा लगा एक नयी बोली को देखना पढना।

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    आई साइबोर्ग, नैतिकता की धज्जियाँ...

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