Tuesday, May 8, 2012

सुमन लिखत श्रृंगारक कविता

मीठगर बोली हम जनय छी
तैयो तीतगर बात करय छी

जौं साहित्य समाजक दर्पण
पाँती मे दर्पण देखबय छी

मिथिला के गुणगान बहुत भेल
जे आजुक हालात, लिखय
छी

भजन बहुत मिथिला मे लिखल
अछि पाथर, भगवान देखय छी

रोटी पहिने या सुन्दरता
सभहक सोझाँ प्रश्न रखय छी

भूख, अशिक्षा, बेकारी सँग
साल साल हम बाढ़ि भोगय छी

सुमन लिखत श्रृंगारक कविता
पहिने सूतल
केँ जगबय छी

1 comment:

  1. सुमन लिखत श्रृंगारक कविता - ई शीर्षक एहि लेल जे मैथिलीकेँ अधिकांश रचना श्रृंगार रस सँ भावाभिभूत होइत रहल छैक, एक सामान्य समझ मैथिली साहित्यकेँ एहि रस सँ पूर्ण बुझैत आयल छैक आ कवि के भावना शुरुआत यैह समझ सँ करैत बुझा रहल अछि। जखन कि कवि सदिखन समाजक वर्तमानपर सुधारात्मक सुझाव सँ रचनाके ओत-प्रोत रखैत आयल छथि तदापि ई शीर्षक संग शुरु करब शायद लोक के ध्यानकेँ बलजोरी अपन पूर्ण रूप निहारबाक लेल ओहिना मजबूर कय रहल अछि जेना नायिका अपन यौवन-दर्शन लेल नायक के किछु विशेष घडीमें करैत छथि।

    बेशक मैथिलीकेँ मीठ बोली मानल जाइत छैक, समस्त संसार एहि भाषाक मधुरताकेँ सराहना अहिना करैत आयल छैक। कवि शुरुएमें शीर्षक सेहो किछु मीठगरे अन्दाजमें देने छथि जे श्रृंगारक ई कविता लिखल जा रहल अछि, आ पहिले पाँतिमें तेकरा प्रमाणित करैत जे - 'मीठगर बोली हम जनैत छी, तैयो तीतगर बात करय छी' अर्थात् मीठ बाजब (लिखब) जनैतो हम किछु तीख बाजय(लिखय) लेल चाहैत छी। हमर मन दग्ध अछि, अपन मिठास के माया सँ पीडित अछि। बस मीठे टा बाजब हमर हृदय स्वीकार नहि कय रहल अछि। भितरक तीख-तीत बहराबैत छी, बाजैत छी, सोझाँ जे छथि तिनका आत्मचिंतन लेल गोहारैत छी।

    'जौं साहित्य समाजक दर्पण, पाँतीमें दर्पण देखबय छी' - पुष्टि कयलनि ऊपरका अन्तर्भावकेँ। समाज लेल केवल मीठगान प्रस्तुत करब - ढकोसला गान समान होयत। अत: साहित्यसेवीकेर कर्तब्य बुझैत जे समाजलेल दर्पण के काज करी, ओ दर्पण जे कहियो झूठ नहि बजैत अछि। तीत सही मुदा सच बाजब - यैह अन्तर्भाव संग रचना प्रस्तुत कय रहल छथि कवि।

    'मिथिला के गुणगान बहुत भेल, जे आजुक हालात, लिखय छी' - पुन: कवि अपन उपरोक्त अन्तर्भावके पुष्टि लेल जोर दैत कहैत छथि जे गुणगान जरुरत सँ बेसी भऽ चुकल अछि, वर्तमान हालात केहेन अछि ताहिपर बेवाकी सँ चर्चा जरुरी अछि। भले एहिमें आत्मसम्मान चोटिल हो, लेकिन जरुरी छैक जे दुनू धार पर नजैर राखी।

    'भजन बहुत मिथिला मे लिखल, अछि पाथर, भगवान देखय छी' - निराशाभाव कही वा खसैत मनोबल जे वर्तमानके विपन्न अवस्था सँ सृजित भेल अछि, भगवान् सेहो पाथर समान बनि गेल छथि, कोनो चमत्कार नहि, कोनो आविष्कार नहि, सम्पन्नता लेल कोनो नव-किरणक जोगार नहि.... तखन भजन कोना गाबी, कोना फूसिये के नाच करी, एहि अभिव्यक्ति सँ देह डोलबैत मन के छूबैत कविवाणी जागृति लेल चिकरैत देखाइत छथि।

    'रोटी पहिने या सुन्दरता - सभहक सोझाँ प्रश्न रखय छी' - सन्दर्भहि सँ जुडल बात आ निर्णय करैत जे पहिने भूख मेटाबय लेल रोटीके जोगार जरुरी अछि। मैथिली केँ तेना कमजोर कैल गेल जे आब मैथिलीसेवा सँ रोटीके जोगारपर प्रश्न अछि। यैह प्रश्न कवि समाजके सोझाँ राखि रहल छथि।

    'भूख, अशिक्षा, बेकारी सँग, साल साल हम बाढ़ि भोगय छी' - मिथिला लेल विद्यमान समस्याके बखूबी इक पाँतिमें समेटैत पुन: कवि अन्तर्नाद सँ समाजकेँ संबोधित करैत छथि। भूख, अशिक्षा, बेकारी आ तेकर संगमें हर वर्ष बाढिक समस्या, यैह तऽ थीक मिथिलाक वर्तमान।

    'सुमन लिखत श्रृंगारक कविता, पहिने सूतल केँ जगबय छी' - अन्तिम पाँतिमें कवि सीधा मनोभाव प्रकट करैत छथि। श्रृंगारक कविता लिखब, पहिने सुतल मिथिलाक जनमानस केँ जगाबी, यैह हमर लेखनीक प्रथम कर्तब्य थीक।

    सधन्यवाद,

    प्रवीण!

    हरि: हर:!

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