Wednesday, July 4, 2012

कनी टा सोचियो मन मे



यौ ककरा की, कखन कहबय, कनी टा सोचियो मन मे
जेबय कठियारी, आ हँसबय, कनी टा
सोचियो मन मे

कहब आभार भेल 
भारी, ग्रहण अछि मुँह पर लागल
कि हँसिकय दुख प्रगट करबय, कनी टा
सोचियो मन मे

स्वजन दुख मे अगर कानय, तखन की मोल सम्पति के
कि टाका सँग अहाँ जरबय, कनी टा
सोचियो मन मे

एखन सम्बन्ध परिवारक, जेहेन अखबार बसिका हो
एहेन दुनिया मे रहि सकबय, कनी टा
सोचियो मन मे

जीयब जौं संस्कारक सँग, तखन जिनगी सुमन-जीवन

ओना बढ़ियो केँ, नित खसबय, कनी टा
सोचियो मन मे

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