Wednesday, October 31, 2012

जागत सकल समाज


उत्साहित युवजन सुमन, ताकि रहल आयाम।
भाव सभक मोनक बनल, विकसित हम्मर गाम।।

चैनपुर छी गाम हमर, जिला सहरसा बीच।
नेता, मंत्री जे सुमन, काज हुनक छल नीच।।

देर, मुदा जागल युवा, भरल मोन मे जोश।
बात खुशी के ई सुमन, बाँचल सभहक होश।।

शुरू करब नहि अछि कठिन, जारी राखब काज।
निश्चित फल भेटत सुमन, जागत सकल समाज।।

आँकब नहि कम बूढ़ केँ, भेटत सब सहयोग।
औषधि छी अनुभव जखन, सुमन भगाबथि रोग।।

Wednesday, October 24, 2012

नीलकंठ बनू


विजया दशमीक दिन। गामक मूर्ति-विसर्जनक पश्चात, गामक लोक सब गजानन बाबूक दरवाजा पर जमा भेलाह। बुझियो जे आन दिनका जेकाँ एक तरह सँ चौपाले लागि गेल। एक ग्रामीणक प्रश्न छल जे आय सम्पूर्ण देश मे विजया दशमीक पर्व अनेकानेक तरीका सँ मनाओल जाऽ रहल अछि। परन्तु अपना सभहक गाम घर मे नीलकंठ पक्षी केँ प्रयास पूर्वक ताकल जाइत अछि पुनि ओकरा उड़ाओल सेहो जाइत अछि कियैक? 

गजानन बाबू बजलाह - देखियो नीलकंठ सँ हमरा सभहक जीवनक बहुत किछु जुड़ल अछि। हमर सभहक पूर्वज बहुत दूरदर्शी छलाह आ प्रतीकात्मक ढंग सँ अपना रिवाज मे बहुतो चीज एहेन जोड़ने रहथि जकर सरोकार आम-जिनगी सँ होइत छल। गाम घर मे आजुक दिन लोक सब नीलकंठ पक्षी केँ देखि अप्पन अप्पन जतरा (यात्रा शब्दक देशज रूप) बनाबय छथि आ नीलकंठक उड़य केर दिशा सँ भरि सालक जतरा केहेन रहत? एकर अनुमान करबाक लौकिक परम्परा सेहो अछि। 

नीलकंठ एक बहुत उपयोगी पक्षी होइत अछि। खेत मे लागल फसल कें नुकसान पहुँचाबयबला जत्तेक कीड़ा, मकोड़ा एत्तेक तक की साँपो, नीलकंठक आहार थीक। आय-काल्हि जे खेत मे कीटनाशकक नाम पर जहर छीटल जाऽ रहल अछि ओकर कोनो जरूरते नहि छैक जौं नीलकंठ पक्षी टा बाँचल रहय। मुदा सुनबा आ देखबा मे आबि रहल अछि जे गिद्ध जेकाँ आय-काल्हि नीलकंठो अलोपित भऽ रहल अछि। देखारे नहि पड़ैत अछि। ई सबटा बेसी फसल आ बेसी दूधक कारणे जे सगरे जहर छीटल जाऽ रहल अछि, ओकरे परिणाम छी। जहिना गिद्ध एक उपयोगी पक्षी अछि, जकरा एक प्राकृतिक "सफाई-कर्मचारी" सेहो कहल जाइत अछि, तहिना नीलकंठ पक्षी सेहो फसल सहित मानवताक लेल बहुत उपयोगी अछि। गिद्धक ऊपर तऽ सरकारक ध्यान गेल आ आब ओकर सरकारी संरक्षण आ अभिवर्धनक उपाय भऽ रहल अछि। मुदा नीलकंठक बारे कोनो चर्चा कतहु नहि अछि? 

प्रायः सब गाम मे अपने सब देखने हेबय जे गामक प्रवेशे-द्वार पर नीलकंठक मंदिर होइत अछि। मानू जे साक्षात नीलकंठ ओहि गामक रखबारी कऽ रहल छथि। ओहिनहियो हमरा "नीलकंठ" शब्द सँ बहुत प्रेम अछि। हमरा, अहाँ केँ वा किनको दिन मे कतेक बेर नीलकंठ बनऽ पड़ैत अछि? कहियो सोचने छिये?

गजानन बाबूक बजबाक क्रम जारी छल - समुन्द्र मंथनक पश्चात् जखन कालकूट जहर निकलल तखन देवगण चिन्तित भेलाह जे आब एहि जहरक कोन उपाय हेतय? बाहर फेंकने सँ संसारक  नाश भेनाय निश्चित छैक। विस्तार मे नहि जाय छी कियैक तऽ ई खिस्सा सब गोटय जनिते होयब। भगवान शंकर तैयार भेलाह आ अपना कंठ मे ओहि कालकूट जहर केँ योगबल सँ स्थान देलखिन्ह जाहि कारणे हुनक कंठ नीला भऽ गेल आ हुनक नाम ताहि दिन सँ नीलकंठ भऽ गेल। जहरक ताप कम करबाक लेल हुनका जटा मे गंगा, माथा पर चन्द्रमा आ गरदैन मे साँप (सब शीतलताक प्रतीक) आबि गेल।

गजानन बाबू पुनि बजलाह -आब अपना अपना जिनगी मे सब सब कियो ईमानदारी सँ सोचय जाऊ जे परिवार होय वा समाज, आफिस होय वा बाजार - हमरा सब केँ कत्तेक बेर ओहेन काज विवशता मे करऽ पड़ैत अछि जे हम सचमुच हृदय सँ नहि करऽ चाहैत छी। मात्र परिवारक, समाजक, नौकरीक, व्यापारक रक्षा लेल। दोसर शब्द मे कही तऽ जहर पीबऽ पड़ैत अछि। कहू फुसियो कहय छी? आब सब कियो अपना मोने मोन सोचियो जे हमहुँ सब रोजे नीलकंठ बनय छी कि नहि? जाबत नीलकंठ नहि बाँचत आ जाबत हमसब नीलकंठ नहि बनब ताबत जिनगीक जतरा कोना बनत यौ? ताहि हेतु नीलकंठ बनय जाऊ। कोनो पारम्परिक बात केँ जीवन सँ जोड़ि देनाय ई गजानन बाबूक विद्वता आ तर्क-शक्तिक कमाल थीक जाहि सँ सब ग्रमीण प्रायः परिचिते छथि।

Saturday, October 13, 2012

हम पान आ प्राण संगहिं छोड़ब।

दिन राति जतऽ देखू ततऽ जाने अनजाने प्रायः सब कियो अप्पन अप्पन विशिष्टता (अहंकार सेहो कहि सकय छी) स्थपित करय मे लागल रहय छथि। बस अवसर भेटबाक चाही। एक महिला मित्र (या मित्राणी जे कही) सँ बातचीत होइत छल। अप्पन विशिष्टताक बोध करबैत बजलीह - हम एहि कारणे अमुक संस्था छोड़ि देलहुँ, अमुक कारणे अमुक संगठन। हमरा कनियो टा अनर्गल बात बर्दाश्त नहि होइत अछि आदि आदि ---। कने देरक बाद पुनः शुरू भेलीह हम चाय छोड़ि देलहुँ, हमरा आब भोजनो सँ ओतेक अनुराग नहि। यानि जेहेन प्रसंग आ परिवेश तेहने अप्पन विशिष्टता पर हुनक वक्तव्य। हमहुँ कतेक सुनितहुँ? एकाएक मुँह सँ निकलल - मित्र अहाँ बिल्कुल ठीक कऽ रहल छी। भने धीरे धीरे सब किछु छोड़य केर आदत बना रहल छी। एक दिन तऽ ई देह आ दुनिया सेहो छूड़ैये पड़त ने। नीक अछि छोड़बाक पूर्वाभ्यास भऽ रहल अछि। हमर महिला मित्र लजाऽ गेलीह।

जीवन जीयब एक धर्म छी। आ धर्म की? विद्वान लोकक मुँह सँ सुनने छी जे "यः धारयति स धर्मः"। अर्थात् धर्म धारण करबाक नाम थीक, नहि की छोड़य वा पलायन केर। जिनगी सँ हम सब कियो रोजे रोज टकराबय छी तखन "जीवन-धर्मक" पालन सम्भव भऽ रहल अछि आ हम सब अपना अपना ढंगे जीबि रहल छी। बहुतो बेर इहो सुनने छी चौरासी लाख योनि भ्रमणक पश्चात मानव जीवन भेटैत अछि। आब अहीं सब कहय जाऊ जे एतेक कठिन सँ मानव-जीवन भेटल तखनहुँ यदि जीवन-धर्मक पालन नहि केलहुँ तऽ की केलहुँ?

प्रायः हम सब कम सँ कम एक पत्नी सहित धिया-पुता, भाय-बहिन, माता-पिताक सँगे एक्के घर मे रहय छी। कम या बेसी आपस मे खटपट होइते रहय छैक। तऽ की हम अप्पन परिजन केँ छोड़ि दैत छी? बहुमतक जवाब भेटत नहि। मुदा जे छोड़ि दैत छथि हुनका समाज मे नीक स्थान कहियो भेटय छै की? बिल्कुल नहि। भबिष्यो मे एहने स्थिति शाश्वत काल तक रहत, ई हम सब उम्मीद कऽ सकैत छी। कारण समाज शास्त्रक हिसाबें मनुक्ख केँ एक सामाजिक जानवर कहल गेल अछि। अप्पन गज़लक ई पाँति याद आबि गेल -

भेट जाय भगवान किंचित्, की भेटत इन्सान यौ
मुँह सँ जे लोक अप्पन, मोन सँ बेईमान यौ

ईमानदारीपूर्वक कहऽ चाहैत छी जे खूब विचार केलाक बाद हम अपना बारे मे कहि सकैत छी जे आयधरि हमहुँ "इन्सान" नहि भऽ सकलहुँ। बस पैघ लोकक बनाओल रस्ता पर चलबाक प्रयास भरि कऽ रहल छी। मोन मे अछि यथासम्भव "जीवन-धर्मक" निर्वाह करी। ताहि हेतु कोनो चीज छोड़य सँ बेसी धारण करवाक प्रवृत्ति अछि।

हम खूब मोन सँ पान खाय छी। जीवनक शुरुआती दिन कहियो पानक डाली मे सुपारी नहि तऽ कहियो पानक पात मुरझायल। दिक्कत होमय लागल तऽ प्रयास कऽ सुमन जी (पत्नी) केँ पान खेनाय सिखेलहुँ। आब हमरा सँ बेसी हुनके बेगरता रहैत छन्हि। हमर दिक्कत खतम। किछु दिन पूर्व एहि "पान-प्रेमक" प्रभाव सँ दाँतक डाक्टर लग जाऽ पड़ल। डाक्टर साहेब सलाह देलथि जे अहाँ पान छोड़ि दियऽ। हमरा मुँह पर मुस्कान देखि डाक्टर साहेब पुनि बाजि उठलाह हँसलहुँ कियैक? हम बजलहुँ - डाक्टरक सलाह तऽ मानब हमर मजबूरी अछि ने? नहि तऽ ----। डाक्टर साहेब बजलाह - नहि तऽ की विचार अछि? हम बजलहुँ - यदि हम्मर विचारक बात होय तऽ हम पान आ प्राण एक्के सँग छोड़ब। डाक्टर साहेब हँसय लगलाह।

Wednesday, October 10, 2012

अप्पन अप्पन - देखू दर्पण

गजानन बाबूक दरवाजा पर साँझक समय आय पुनः चौपाल सजल छल। गामक लोक सब अपना अपना काज सँ निवृत भऽ सब दिनक भाँति चौपाल मे आबि बैसल रहथि। आय गजानन बाबू समाज मे व्याप्त भ्रष्टाचार आ अन्य बुराई पर चिन्तित रहथि। भ्रष्टाचार सँ सम्पूर्ण देश मे हहाकार मचल अछि। अखबार, रेडियो, टेलीवीजन जतऽ देखू ततऽ भ्रष्टाचार सम्बन्धी खिस्सा? की भऽ रहल छैक समाज आ देश मे। जिनका देखू वो भ्रष्टाचार पर व्याख्यान दऽ रहल छथि सँगहि ओकर निदानक उपाय सेहो सुझा रहल छथि अपना अपना हिसाबें। किनको ज्ञान किनको सँ कम रहन्हि तखन ने? पंचायत सँ दिल्ली धरि जिनका अवसर छन्हि, लूटय मे लागल छथि। पहिने सामाजिक व्यवस्थाक कारणे लोक केँ चोरि, छिनरपन सँ लाज आ डर लागैत छलय। परन्तु आब? आब तऽ ई हमर समाजक व्यवस्थाक एक अभिन्न अंग बनि गेल अछि सँगहिं टाका सँ प्रतिष्ठा सेहो भेटैत अछि।

गजानन बाबू ग्रामवासी केँ सम्बोधित करैत बजलाह - अपने सब कनेटा ई बताऊ जे पुलिस हो वा नेता, कलर्क हो वा कलक्टर ई सब तऽ हमरा समाजेक लोक होइत छथि कि नहि? आय जे किछु गड़बड़ भ्रऽ रहल अछि देश वा समाज मे ताहि मे हिनके भूमिका प्रत्यक्षतः देखवा मे आबि रहल अछि। एना कियैक भेल? आ कोना भेल? विचारणीय अछि। हमरा याद आबैत अछि बहुत पुरनका बात। अपने गाम मे एक छलाह सुक्कन बाबू जिनक प्रयास सँ आय अपना गाम मे हाइ स्कूल, डिस्पेन्सरी, खादी-ग्रामोद्योग केन्द्र आदि चलि रहल अछि। गामक लोकक उपकार भऽ रहल छैक। मुदा सुक्कन बाबू केँ अपना जीबैत कहियो लोक मोजरे नहि देलखिन्ह। जानय छी कियैक? कियैक तऽ सुक्कन बाबू अपना जिनगीक शुरूआती दिन मे ताहि दिनक सामाजिक व्यवस्थाक विपरीत वर्जित काज केने रहथि टाका कमाबय खातिर। सुनबा मे तऽ इहो आबैत अछि जे वो बगरो केँ जाल मे फँसा कऽ फलक कहिकय बेचैत रहथि। खैर--- हमर अभिप्राय ई कखनो नहि जे एक दिवंगत आत्माक निन्दा करी। ओहिनहियो हुनका सनक "युग-पुरुष" आब कतय? हमर अभिप्राय छल जे पहिलुका दिन मे अहाँ टाका सँ कतबो मजबूत भऽ जाऊ मुदा सामाजिक वर्जनाक अतिक्रमण केला पर अहाँ केँ समाज मे जिनगी भरि मान्यता नहि भेटत। ई डर सामाजिक व्यवस्था केँ ईमानदार बनेने छल। मुदा आब ई डर सभहक मोन सँ निपत्ता भऽ गेल अछि जे कारण अछि समाज मे आजुक सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचारक।

किछु देर चिन्तनक पश्चात गजानन बाबू अप्पन एक संस्मरण केँ याद करैत बजलाह - पिताजीक मृत्युक पश्चात हमरा मैट्रिकक परीक्षाक बादे मात्र सवा सोलह सालक उमरि मे गाम सँ रोजगारक लेल बाहर जाऽ पड़ल। पहिल बेर गाम सँ बाहर जेबाक कारणे आ गरीबीक डर सँ हम खूब कनैत छलहुँ। गामक बाहर होइते सीताराम कक्का भेटलाह। हुनका प्रणाम केलहुँ तऽ वो आशीर्वादक पश्चात कहलन्हि जे बेटा अहाँ कनय छी कियैक? खूब हूब सँ जाऊ। नौकरी भेटबे करत। बस एकटा बातक ध्यान राखब जे "जीभ" आ "आचरण" पर सब दिन नियंत्रण राखब। अहाँ सब दिन सुख करब। गजानन बाबू बातक क्रम केँ आगाँ बढ़ाबैत बजलाह - हमरा सचमुच जिनगी मे कतेक बेर एहेन प्रलोभन सेहो भेटल। लेकिन सब बेर हमरा एहेन बुझना गेल जे सीताराम कक्का अप्पन पुरनका बात हमरा सोझाँ मे दोहरा रहल छथि आ हमर डेग सीमा रेखा सँ आगाँ नहि बढ़ि सकल।

गजानन बाबू पुनि बजलाह - नौकरीक करीब पंद्रह बरस बादक एक घटना याद आबैत अछि। एक बुजुर्ग व्यक्ति हमरा सँ पुछलन्हि - की हौ गजानन नौकरी करय छऽ? हमर जवाब - जी हाँ। हुनक प्रतिप्रश्न - "ऊपरी कमाय" कत्तेक होय छऽ? हम्मर जवाब - किछुओ नहि। पुनः हुनक निर्मम प्रतिक्रिया - तखन की खाक नौकरी करय छ? ई जवाब सुनितहिं हम अबाक भऽ गेलहुँ। गजानन बाबू बजलाह - देखू एक्के गाम, लोको ओहने मुदा विचारक स्तर पर कतेक परिवर्तन भऽ गेल? कहबाक तात्पर्य जे कोनो बुराई वा भ्रष्टाचारक प्रशिक्षण तऽ किनको सामाजे मे भेटय छै कि नहि? भ्रष्टाचार मे लिप्त तथाकथित लोक केँ गरियेने सँ किछुओ फायदा नहि? वरन् हमरा सब केँ अप्पन अप्पन भीतर मे देखऽ पड़तय ईमानदारी सँ जे हम कतेक ईमानदार छी आ हम अपना अगिला पीढ़ी केँ की प्रशिक्षित कऽ रहल छी। रोज एक बेर अप्पन अप्पन अन्तर्मनक दर्पण देखबाक जरूरत अछि सब गोटय केँ। नहि तऽ ई सामूहिक सामाजिक सांस्कृतिक अवनयनक युग सँ बाँचब मुश्किल।