Tuesday, November 13, 2012

निर्दोष जीवक हत्या - एक विचारणीय प्रश्न


गामक जागरूक आ उत्साही लोकक सहयोग सँ काल्हि चैनपुर मे "गामक विकास लेल मैराथनक" सफल आ ऐतिहासिक आयोजन भेल। आय गाम मे "क्विज" प्रतियोगिताक आयोजन अछि। सचमुच एक नूतन दिशा आ प्रशंसनीय प्रयास। बधाई के पात्र छथि आयोजनकर्ता सब।

आय गाम मे काली पूजाक दोसर दिन छी। आय दुनु काली घर मे करीब १५०० निर्दोष छागर आ पारा केर बलि-प्रदान (हत्या) सेहो होयत शाक्त-पूजाक नाम पर। हम आयधरि एहि धार्मिक नृशंसताक औचित्य नहि बुझि सकलहुँ? बहुत किछु पढ़बाक प्रयास केलहुँ, बहुत विद्वान सँ वार्ता सेहो भेल परन्तु हम संतुष्ट नहि छी एखनहुँ। बहुत विचार केलहुँ धार्मिक-आध्यात्मिक दृष्टिकोणे, मानवीय दृष्टिकोणे, वैज्ञानिक आ इकोलाजिकल बैलेन्सक दृष्टिकोणे - मुदा समाधान नहि भेटल जे एहि तथाकथित "धार्मिक हत्याक" आखिर औचित्य की?

हम नास्तिकता के समर्थक नहि छी। पूजा पाठ खूब करय छी आ विश्वास सेहो राखैत छी। हम जनैत छी जे एहि पोस्ट पर कतेक गोटय के विरोध सेहो हेतेन्ह आ सँगहि सँग कतेक तर्क सेहो भेटत एहि कृत्यक समर्थन मे। हम इहो जनैत छी जे मात्र हमरा किछु लिखने वा कहला सँ ई सैकड़ों सालक परम्परा रुकबो नहि करतय। तथापि आय नहि रोकि सकलहुँ अप्पन एहि अवधारणा केँ पोस्ट करय सँ। सँगहिं सँग ईहो निवेदन जे हम्मर उद्येश्य किनको धार्मिक भावना केँ चोट पहुँचेबाक नहि अछि। 

हम गामक समस्त लोक, विद्वान, प्रबुद्ध-वर्ग सँ विनम्र निवेदन करैत छी जे अप्पन अप्पन विचार एहि विषय पर राखथि जे एहि निर्दोष जीवक बलि-प्रदानक (हत्या) आखिर औचित्य की? एहि बहाना हमरो ज्ञान मे किछु वृ्द्धि भऽ सकैत अछि वा एहि कारणे जन-जागरण सेहो सम्भव अछि। 

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