Tuesday, October 8, 2013

मैथिली बाल सहित्यक : भाषा आ भबिष्य

एहि विषय केर स्वाभाविक रूप सँ दुई भाग भऽ जायत अछि। पहिल भाग - मैथिली बाल साहित्यक भाषा आ दोसर भाग - मैथिली बाल साहित्यक भबिष्य। आऊ एहि दुनु विषय पर हम अप्पन बात संक्षेप मे कही। लेकिन ताहि सँ पहिने बाल साहित्य सँ की तात्पर्य? बाल साहित्यक अर्थ की? वो साहित्य जे नेना भुटकाक लेल लिखल जाय। नेनपन मे जखन धिया-पुता पाठशाला जाय लगैत छथि तखने सँ पोथीक आवश्यकता भऽ जायत अछि। ताहि हेतु नेना भुटका लेल हर भाषा मे सहज, सुगम्य आ सुबोध भाषाक पोथी लिखल जायत अछि जाहि सँ बच्चा सब केँ पढ़ब आ बुझब सहज हो। सब सँ सुबोध  मातृभाषा होयत अछि बालमन लेल। मातृभाषा अर्थात् माता सँ गप्प करबाक भाषा। समूचा विश्व मे आब ई बात मानल जाऽ रहल अछि जे बच्चा सब केर प्रारम्भिक शिक्षा मातृभाषा मे ही हेबाक चाही ताकि वो सहजता सँ ज्ञान प्राप्त कऽ सकय।

मैथिली बाल साहित्यक भाषा - भाषा केँ भाव-संप्रेषणक संवाहक मानल जायत अछि। हम एक दोसर सँ भाषाक माध्यमे तऽ जुड़ैत छी। जुड़ाव तखन बेसी भऽ जायत अछि जखन भाषा सहज आ सुगम्य हो। मामला तखन आओर संवेदनशील भऽ जायत अछि जखन हम बच्चा सँ संवाद करैत छी। जखन हम बालक केँ अप्पन समाज आ संस्कृति सँ जोड़ैत छी। जाबत धिया पुता सँ हम ओकर अनुकूल रुचिकर भाषा मे बात नहि करबय ताबत बच्चो सभहक रुचि नहि जागत किछु नव सीखबाक लेल। बाल साहित्य पर डा० दमन कुमार झा द्वारा लिखित पुस्तकक अनुसार बाँग्ला केँ छोड़ि आओर कोनो पड़ोसी क्षेत्रीय भाषा यथा असमिया, उड़िया आदि मे बाल साहित्यक विकास आधुनिक युगक देन छी यानि मोटा मोटी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद। बंगाल मे बाल साहित्यक शुरूआत ईसाइ मिशनरी द्वारा भेल। वो बच्चा सभहक लेल पोथी छपौलक। एहि काजक लेल एक समिति बनाओल गेल जकर सदस्य छलाह- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, राधा कान्त देव तथा अन्य विद्वान। डा० दमन कुमार झाक अनुसार कलकत्ता बुक सोसायटी एहि समितिक अनुशंसा पर "उपदेश कथा" नामक बालपोथी छापलक। एकरे बंगाल मे बालपोथीक आद्य पुस्तक कहल जाऽ सकैत अछि। ओना १८१९ मे ताराचन्द दत्तक "मनोरंरजन इतिहास" सेहो प्रकाशित भेल मुदा बाल साहित्य केँ नवीन मोड़ देलनि ईश्वरचन्द्र विद्यासागर। विद्यासागरक बादो बंगाल मे बाल साहित्य पर निरन्तर काज चलैत रहल आ रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा आओर आधुनिकता प्रदान कयल गेल।

ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि आ सामाजिक संरचनाक आधार पर ही कोनो भाषाक विकासक क्रम बुझल जाऽ सकैत अछि। मिथिला मे मोटा मोटी दू वर्ग मे बँटल छल - जमींदार आ बोनिहार। स्वाभविक रूप सँ संख्या मे जमीन्दार बहुत कम आ बोनिहार बेसी होयत छल। बोनिहारक घर मे पिता आ पैघ बच्चा भरि दिन जमीन्दारक ओहिठाम काज करैत छल आ साँझक समय ताड़ी पीबिकय घर मे आबिते कनिया आ धिया पुता सँगे गारि मारिक घटना आम बात। छोट धिया पुता देखबाक लेल विवश। परिणाम बच्चा सब मे प्रतिभा रहितो समय सँ पूर्वे वो कुंठित भऽ जायत छल। एहि स्थितिक चित्रण यात्री जी मार्मिक ढंग सँ एहि कविता मे केने छथि –

तानसेन कतेक रवि वर्मा कते
घास छीलथि बागमती कछेड़ मे
कालीदास कतेक विद्यापति कते
छथि हेड़ायल महिसबारक हेड़ मे

धृतराष्ट्र विलाप मे रामपति चौधरी लिखने छथि  जे "मिथिलाक नेना माय सँ दुलार पबैत छल मैथिली मे, पिताक अनुशासन भेटैत छलैक मैथिली मे, अपन मित्र-मण्डली मे झगड़ा-दन करैत छल मैथिली मे। एतेक धरि जे स्कूलो मे अपन शिक्षक सँ छुट्टी मँगैत ओ मैथिली मे, कनैत हँसैत छल मैथिली मे, मुदा पढ़ैत छल ओ हिन्दी आ अंगरेजी।"

आजादीक बादो मैथिली स्वतंत्र रूप सँ पाठ्यक्रमक विषय नहि बनि सकल। तथापि मिथिला क्षेत्रक विद्वान मनीषी द्वारा कतेको बाल पोथी सहज-सुगम्य भाषा मे लिखल गेल आ लिखल जाऽ रहल अछि। उदाहरण स्वरूप पूर्व मे चर्चा कयल डा० दमन कुमार झाक शोध-प्रबंध मैथिली बाल साहित्य, जे सम्भवतः मैथिली बालसाहित्य पर पहिल आ एकमात्र शोधक पोथी अछि, के अतिरिक्त मनबोध रचित "कृष्ण जन्म", रामपति चौधरीक "धृतराष्ट्र विलाप", डा० रामदेव झाक "इजोती रानी", कवीश्वर चन्दा झाक "वाताह्वान", ऋषि वशिष्ठक १- जे हारय से नाक कटाबय - बाल उपन्यास, २- कोढ़िया घर स्वाहा - बाल उपन्यास, ३- झुठ पकड़ा मशीन - बाल उपन्यास, ४- माटि परक लोक आ सुफांटि जतरा - कथा संग्रह ५- नित नित नूतन होय - कथा संग्रह, जीव कान्त जीक खिखिर बिएट आ बाबाजीक बेटी, डा० धीरेन्द्र कुमार झाक हमरा बीच विज्ञान, सियाराम झा सरस केर फूल तितली आ तुलबुल आदि के अतिरिक्त आओर कतेको बाल साहित्यक पोथी मैथिली मे लिखल गेल जकर नाम एहि सूची मे नहि आबि सकल।

एहि दिशा मे विद्वान रचनाकार द्वारा बाल मनोविज्ञान केँ ध्यान मे राखि सरल सहज भाषा मे पोथी लिखल गेल जे स्वाभाविक रूप सँ बच्चा सभहक हेतु बोधगम्य भऽ सकय। जेना मनबोध कृष्ण जन्म मे बाल कृष्णक चंचलताक वर्णन करैत लिखने छथि कि –

एक दिन गोकुल पुर हौआ
हय रूप धय पहुँचल बौआ
झट झट ओठ जीह लय काट
खट खट खुर लय मेदिनी काट

उक्त पद्यांश मे झट झट आ खट खट - एहि प्रकारक शब्दक उच्चारणक प्रति बालमनक आकर्षण स्वाभाविक रूप सँ भऽ जाइत अछि। पद्यात्मक शैली मे वर्णमाला सिखयबाक लेल सेहो कतेको प्रयास भेल। कवीश्वर चन्दा झा वाताह्वान मे लिखने छथि –

कल कौसल बक कटका खाय
कटहर पर बैसल सुख पाय
ललकि फलकि बक लोहना जाथि
लपची माछ लपकि तत खाथि

वर्णमालाक सब अक्षर सँ सरल शब्द मे बाल सुलभ अक्षर ज्ञान कराबय हेतु आओर बहुत प्रयास भेल। एहि दिशा मे उपेन्द्र नाथ झा व्यास द्वारा "अक्षर परिचय" मे सुन्दर बाल कविताक रचना कयलनि – 

अटकन मटकन खेल खेलाउ
आम बीछि गाछी सँ लाउ
इचना माछक साना होइछ
ईंटा सँ घर महल बनैछ
उचकुन केँ चूल्हा पर देखू
ऊसर खेत मे गोबर फेकू

एवंम प्रकार सँ कवर्ग, चवर्ग, तवर्ग पवर्ग यानि सब वर्णाक्षर सँ शुरू करैत हुनक पद्यात्मक कृति बहुत रुचिगर भेल जे बाल वर्गक लेल बोधगम्य भऽ सकल। यथा –

ककबा सँ अहाँ सीटू केस
खटर लाल केँ लगलनि ठेस
गदहा होइये पशु मे बूड़ि
घड़ी अधिक छूनहि सँ दूरि

चलू सभहि मिलि देखू नाच
छओ पैसा मे किनलहुँ साँच

तरबा मे नहि होइये केश
थरथर काँपथि डरेँ धनेश
दही चुड़ा मे गारू आम
धनधन छला भरत ओ राम

ओहिना डा० तेजनाथ झा अभियान गीतक माध्यमे नेना मे सुसंस्कार भरबाक सफल प्रयास केने छथि -

मिथिला केर हम बच्चा छी
काज करय मे सुच्चा छी
कनियिो हम नै लुच्चा छी
पढ़बा मे नहि कच्चा छी
हम शभ सँ अगुआइत छी
आगू बढ़ले जाइत छी

यंत्रणा क्षण मे - मैथिलीक प्रसिद्ध कवि उपेन्द्र दोषीक एहि काव्य संग्रह  मे  अनेक स्तरीय कविता  भेटैत अछि जकरा बालोपयोगी मानल जाऽ सकैत अछि जाहि मे मनोरंजन सेहो देखल जाऽ सकैत अछि –

ला कुतमारा लाठी रौ
नहि तँ ला खोरनाठी रौ
परिकल कुतिया फेरो अयलौ
फेरो चटतौ थारी रौ

ओना कवि सुरेन्द्र झा सुमन जीक कविताक मर्म बुझबा मे पढ़लो लिखल लोक केँ कठिनता होइत छनि मुदा नेना लोकनिक हेतु सेहो सहज-शिक्षाप्रद-मनोरंजक कविताक रचना अपन "सनेस" पोथी मे केने छथि। राष्ट्रवादी चिन्तनक किछु पाँति –

देश हमर अछि भारतवर्ष
सभ सँ बढ़ल चढ़ल उत्कर्ष
जनिक माथ पर उज्जर केश
बनल हिमालय निर्मल वेश
हिलि मिलि गंगा यमुना नीर
उमड़ल, जहिना मन आवेश

तहिना मिथिला महिमा वर्णन मे सुमन जी कहय छथि कि –

घर घर चर्खा टकुरी ताग
बाड़ी बाड़ी पटुआ साग
सबतरि केरा आम लताम
सब सँ सुन्दर हमरे गाम

ओहिना गीतकार रवीन्द्र नाथ ठाकुर जीक गीत संग्रह "चलू चलू बहिना" मे बाल सुलभ ज्ञान सहित उत्साहवर्धक आ मनोरंजक पाँति द्रष्टव्य अछि –

अर्र बकरी घास खो
छोड़ गोठुल्ला बाहर जो
लुरू-खुरू बिनु कयने बहिना
पेट भरल की ककरो?

एवम प्रकारें हम देखैत छी जे मैथिली बाल साहित्यक भाषा सहज बोधगम्य अछि खास कऽ नेना भुटकाक लेल। आजादी केर बाद एहि दिशा मे बहुते काज भेल अछि आ एखनो जारी अछि। जकर प्रमाण अछि मूर्धन्य कवि सियाराम झा सरस जीक पोथी फूल तितली आ तुलबुल।

मैथिली बाल साहित्यक भबिष्य - उपरोक्त एतेक सुखद स्थितक वर्णनक पश्चात् ई कहबा मे कोनो हिचक नहि अछि जे मैथिली बाल साहित्यक भबिष्य नीक नहि अछि। डा० दमन कुमार झा अपना शोध प्रबंध मे अन्ततः एहि नष्कर्ष पहुँचैत छथि जे मैथिली बाल साहित्यक वर्तमान स्थिति आ भबिष्य शोचनीय अछि। एकर अपेक्षित विकास नहि भऽ सकल।

वस्तुतः साहित्य सामाजिक दायित्व-बोधक प्रतिफलन छी आ मिथिलाक रचनाकारक ई सामाजिक दायित्व-बोधक परिणति छी आजुक मैथिली बाल साहित्य। आजादी केर पूर्वो मिथिला मे पढ़य लिखय केर मतलब होइत छल संस्कृत पढ़ब। अर्थ बुझाओल जाय छल मैथिली मे किन्तु पढ़ाय होइत छल संस्कृत केर। मैथिली भाषा केँ एहि पात्रक नहि मानल जाइत छल जे ओहियो मे किछु लिखल पढ़ल जाय। व्यावहारिक रूप सँ प्रायः समस्त मिथिलावासी द्वारा आम जीवन मे मैथिलीक उपयोग करितो मैथिलीक सतत अनादर भेल आ परिणाम आय हमरा सभहक सोझाँ मे अछि। 

आजादीक बादो मैथिली भाषाक सतत अवहेलना भेल जे एखनहुँ भऽ रहल अछि। सब सँ दुखद स्थिति ई अछि जे सरकारी स्तर पर मिथिला क्षेत्र मे रहनिहार आ आम जीवन मे स्वतः मैथिली बजनिहार करोड़ों मैथिली भाषाभाषी केर मातृभाषा हिन्दी मानल जाइत अछि। ताहि हेतु मिथिला क्षेत्र मे भी मातृभाषा मे शिक्षा देबाक नाम पर हिन्दी पढ़ाओल जाऽ रहल अछि। आब तऽ आओर अन्हेर भऽ रहल अछि। हर गली हर मुहल्ला मे अंग्रेजी स्कूल खुलि गेल अछि। आब मैथली केँ के पूछय? जखन बाल वर्ग मे मैथिली केर पढ़ाय केर व्यवस्था नहि हो, पैघ भेला पर मैथिली पढ़िकय रोजी-रोजगारक बहुते कम अवसर हो तखन मैथिली लोक कोना पढ़त? कियैक पढ़त? जखन एहेन विकट स्थिति सोझाँ मे अछि तऽ मैथिली बाल साहित्यक भबिष्य सेहो सहजता सँ बुझल जाऽ सकैत अछि।

निष्कर्ष जे मिथिला क्षेत्रक मातृभाषा “मैथिली” सरकारी स्तर पर घोषित हो आ बाल वर्ग सँ मैथिली साहित्य पढ़ाबय केर व्यवस्थाक सँग सँग मैथिली पढ़निहारक लेल रोजी रोजगारक इन्तजाम सेहो। मैथिली बाल साहित्यक भाषा केँ मानक भाषाक व्यामोह सँ पिण्ड छूटय तऽ भबिष्य नीक भऽ  सकैत अछि ई आशा कयल जाऽ सकैत अछि। 

Saturday, September 21, 2013

हमर गीत

हमर गीत
नीक कहय लोक
सुनियौ मीत

भोगल सत्य
बनेलहुँ कविता 
आतम कथ्य

किनको नीक
किनको अधलाह
हम बताह

होश मे जीबू
नहि तऽ नोर पीबू
श्रम जीवन

कविता प्राण
हरदम प्रयास
सुमन-प्यास

Monday, July 15, 2013

ई मिथिला के शोक

जाति पाति के नाम पर, खूब चलल अछि राज।
कहिया जागब यौ सुमन, टूटत जखन समाज?

मीठगर बोली सुनिकय, मोन बढ़ल विश्वास।
मिथिला डूबल पानि मे, मेटि सकल नहि प्यास।।

भागि रहल युवजन सुमन, छोड़ि छाड़िकय गाम।
बन्द भेल उद्योग सब, सरकारी परिणाम।।

मिथिला सँ बाहर सुमन, उन्नत मैथिल लोक।
ध्यान हुनक नहि गाम पर, ई मिथिला के शोक।।

मैथिल प्रतिभा के धनी, बिसरि गेल अछि मूल।
देर भेल पहिने बहुत, आब करू नहि भूल।।

Saturday, January 19, 2013

तऽ फेर की केलहुँ?


बात जौं मोन के नहि केलहुँ, तऽ फेर की केलहुँ?
प्रीत केर दीप नहि जरेलहुँ, तऽ फेर की केलहुँ?

कतेको लोक खसैत भेटत, रोज दुनिया मे
एको टा लोक नहि उठेलहुँ, तऽ फेर की केलहुँ?

लगल छी जोड़ घटावे मे, हम भरि जिनगी   
अपन हिसाब नहि लगेलहुँ, तऽ फेर की केलहुँ?

ज्ञान, धन खूब बढ़ेलहुँ हम गाम सँ बाहर
गाम पर ध्यान नहि लगेलहुँ, तऽ फेर की केलहुँ?

सुनय छै आब कहाँ कियो, सब बाजय छै
सुमन केँ गीत नहि सुनेलहुँ, तऽ फेर की केलहुँ?

Sunday, January 13, 2013

सदरिखन सपना रहय

लोक अप्पन रहय वा कि अदना रहय
हुनक मन मे सदरिखन सपना रहय

लोक बुझय कियै मोल मरले के बाद
छोड़ि देलक जे दुनिया वो गहना रहय

पैघ  केँ मान दैत बात खुलिकय करू
मुदा बाजू उचित जे भी कहना रहय

माय बापो तऽ जीबैत भगवान छी
नाम हुनके जपू जिनक जपना रहय

हो उचित आचरण छी सभा मे सुमन
चाहे बैसी ओतय वा कि उठना रहय